Monday, March 4, 2019

जम्मू कश्मीर: धारा ३७० क्या हे?


नमस्कार! आज कल देश में जम्मू कश्मीर की सब जगह चर्चा हे. एक राजकीय पक्ष कह रहा हे की धारा ३७० निकाल देना चाहिए, दूसरा पक्ष कह रहा हे ये धरा रहने देना चाहिए. चलो सबसे पहले समझते हे की धारा ३७० हे क्या?

महाराज हरि सिंह, जम्मू और कश्मीर के महाराज

धारा ३७० के बारे में हर किसीके समझ अलग अलग हे! पर पूरा सच किसीको पता नहीं हे. हर कोई अपना अपना ज्ञान बताके चला जाता हे. महाराज हरि सिंह (जन्म: 21 सितंबर 1895, जम्मू; निधन: 26 अप्रैल 1961 मुंबई) जम्मू और कश्मीर रियासत के अंतिम शासक महाराज थे। इन्हें जम्मू-कश्मीर की राजगद्दी अपने चाचा, महाराज प्रताप सिंह से वीरासत में मिली थी।



महाराज हरि सिंह ना ही भारत के साथ जाना चाहते थे नहीं पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे! उनका इरादा जम्मू कश्मीर को अलग देश बनाने का था. ये वो डोर था जब भारत पाकिस्तान के बिच बड़ा तनावपूर्ण वातावरण था, सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे, उसी दौरान जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक से हमला होता हे और हालत नियंत्रण से बाहर जाती हे. महाराज हरि सिंह भारत से मदत मांगी. उस वक्त भरक के पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनको कहा अगर आप विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करते तब हम हमारी सेना को जम्मू कश्मीर में आपकी मदत के लिए नहीं भेज सकते.


महाराज हरि सिंह अस्थायी विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते हे, उसके बाद हमारी भारतीय सेना जम्मू कश्मीर में मदत के लिए जाती हे. ऐसी समय जो पेच हे वो उलझा गया. हमारे बाकि जो राज्य थे उन्होंने बिना शर्त विलय पत्र पर अपने हस्ताक्षर किये थे पर महाराज हरि सिंह ने कुछ शर्तो के साथ विलय पत्र पर अपने हस्ताक्षर किये थे. उस विलय पत्र के अनुसार जम्मू कश्मीर पूर्ण तहा भारत में शामिल नहीं हुआ था, जम्मू कश्मीर ने अपनी जो स्वायत्तता हे उसको बरक़रार रखा था.
हरि सिंह ने २६ अक्तुबर १९४७ को परिग्रहन के साधन पर जो हस्ताक्षर किए, उन्होंने स्पष्ट रूप से उसमे लिखा था की यह एक अस्थायी समझौता हे, विलय पत्र पर आपातकालीन परिस्तितिया होने के वजह से हस्ताक्षर किये जा रहे हे, जब सामान्य स्तिथि हो जाएगी, तब जम्मू कश्मीर की जो जनता हे वो खुद तय करेगी की उनको पाकिस्तान के साथ जाना हे या भारत के साथ जाना हे या स्वतंत्र रहना हे. यही एक बात हे जो कुछ बुद्धिजीवी आपको नहीं बताते या फिर उनकी मनशा बताने की हो सकती हे. जब जम्मू कश्मीर की स्थिति सामान्य हो जाएगी तब उसका भाग्य वह की जनता करेगी की भारत या पाकिस्तान तय करेगी.

विलय पत्र में ऐसा क्या था जो भारत और जम्मू कश्मीर में रिश्ता बनता हे?
.विदेशी मामले  .संचार  .रक्षा ये तीन ही मामले थे जिसमे भारत सरकार जम्मू कश्मीर में हस्तक्षेप कर सकती थी. बाकी जम्मू कश्मीर का जो प्रशासन था वो खुद संभालता था. इसके आलावा बी अगर भारत जम्मू कश्मीर में हस्ताक्षेक करना चाहता था तो भारत को जम्मू कश्मीर की जो संविधान सभा थी उससे अनुमति लेनी पड़ती थी. तो ये हे धरा ३७० दूर से. जम्मू कश्मीर को ये भी अधिकार हे की उनका खुदका राष्ट्र ध्वज होगा. आंतरराष्ट्रीय स्तर जो उनकी पहचान होगी वो भारतीय नागरिक के रूप होगी.


उस वक्त हे जो भारत के राजनेता थे उन्होंने यह सोच कर ये सब किया की किसी तरह वो जम्मू कश्मीर की जनता को अपने विश्वास में कर लेंगे, उनको अच्छी सुविधाएं देंगे, किसीभी तरह हम उनको प्रभावित करेंगे और जम्मू कश्मीर को भारतीय राज्य में मिला लेंगे. लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं और आज भी ये मसाला रुका हुआ हे. पर कुछ भक्त जल्दबाजी में यह कह देते हे की जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हे. राजा हरि सिंह विलय पत्र में स्पस्ट रूप से लिखते हे की,

"इस पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं हे जिसे भारत के किसी भावी संविधान के स्वीकार के लिए मेरी वचनबद्धता माना जाये या जो भारत सरकार के साथ ऐसे किसी भावी संविधान के साथ अपने सम्बन्ध हेतु समझौते करने के मेरे अधिकार को बाधित करे".

उसके बाद उसी विलय पत्र पर अपनी सहमति जताते हुआ १९४८ के अंदर एक श्वेत पत्र जारी किया, उसमे उन्होंने लिखा भारत के और से,

"भारत विलय पत्र को पूर्ण तोर से अस्थायी मानेगी जब तक जम्मू कश्मीर के लोगो की इच्छा सुनिश्चित कर ली जाये"यानी सीधे शब्दों में जब तक जनता से पूछ लिया जाये. उस वक्त एक तरीका निकला गया था की जनमत संग्रह, यानिकि वह की जनता से वोटिंग किया जाये की वह की जनता क्या चाहती हे. धरा ३७० को समझने के लिए इन बुनियादी मुद्दों को समझना बहोत जरूरी हे.

उसके बाद आप जानते हे ये मसाला आंतरराष्ट्रीय हो गया, दोनों देशो ने अपनी सेना वह से हटाई नहीं और वह की जनता हो अपनी बात रखने का मौका मिला नहीं. और जो धरा ३७० थी वो भारतीय संविधान में स्थाई रूप से जुड़ गई. धरा ३७० को जम्मू कश्मीर की जनता एक अपने स्वाभिमान बचके रखने का प्रतिक की और से देखती हे.


धारा ३७० को हटाना चाहिए?
कुछ लोग ये मांग कर रहे हे की इस धारा को हटा देना चाहिए और जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल कर देना चाहिए. क्या ये हैट सकती हे? महत्वपूर्ण ये हे की ये मांग उस दौर उठ रही हे जब हमने जम्मू कश्मीर को भीतर से खो दिया हे. मनोविज्ञानिक रूप से खो दिया हे. इसके पीछे अनेक वजह हे. सबसे पहले वजह यह की भारत के अंदर के जो दक्षिणपन्थी(right-wing politics या rightist politics ) विचारधारा की ताकद ने इतनी जोर शोर से प्रकट हुआ जिन्होंने जम्मू कश्मीर को एक अंतरवाद के रूप में लोगो के सामने प्रस्तुत किया. इन्ही दक्षिणपन्थी ताकतों ने कश्मीरी राष्ट्रवाद को मुस्लिम राष्ट्रवाद के रूप में देश के सामने प्रस्तुत किया. इससे हुआ यह की जम्मू कश्मीर के लोगोका भारत के प्रति जो लगाव था वह काम होता गया. पुरे देश के सामने आम लोगो के सामने मीडिया ने नेताओ ने जम्मू कश्मीर के सामने जो मांग थी राष्ट्रवाद की उसको आतंकवाद के रूप में प्रस्तुत किया. हमारी सेना जम्मू कश्मीर में जो भी काम कराती हे उससे हम जायज ठरते हे और वह के लोग जो भी विरोध प्रतिरोध करते हे उससे हम आतंकवाद के रूप में प्रस्तुत करते हे. जिन्होंने धरा ३७० लागु किया उन्होंने यह कहा था की हम जम्मू कश्मीर को विश्वास में लेकर शामिल कर लेंगे और उसके बाद जो दक्षिणपन्थी ताकते हे उन्होंने इस कश्मीरी राष्ट्रवाद को मुस्लिम राष्ट्रवाद को पेश करके एक तरह हिन्दू मुस्लिम मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही हे. अब आप सोचिये धारा ३७० हटाना चाहिए या नहीं.

धारा ३७० एक स्वाभिमान का प्रतिक हे जम्मू कश्मीर के लोगो के लिए जो आज सिर्फ नाम मात्रा रह गई हे. आज के दौर में भारत की पूरी दखलंदाजी जम्मू कश्मीर में हे. २०१० में भारत सरकार ने भारतीय संविधान की ३१ धराये भी जम्मू कश्मीर में लागू की गई हे.

जम्मू कश्मीर का मसाले का हल गोली से होगा गाली से, सिर्फ और सिर्फ बातचीत से हो सकता हे. सेना के दम पर जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल करना बहोत मुश्किल हे.

- अमित वाढे

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